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Thursday, September 19, 2013

श्री सुक्खन लाल चौहान द्वारा (बाँदा, यु. पी.) से प्रकाशित 'चौहान चेतना' त्रैमासिक(अंक- जुलाई, अगस्त २०१३) पत्रिकानुसार 
8. Ku. Anju Chouhan, 29 Yrs, LL.B. B.ed., UPTET and IBPS passed, Wheatish color,  5ft- 4 inches,perfect in household... Cont.. 9. Chi. Sanjay Chouhan, 27 yrs, wheatish,6ft, B.Tech.,. M.Tech.,  Electrical Engr,Working as leacturer, seeking beautiful homely, educated girl. Contact- Sh Ramashankar Chouhan, H. No. 264, Om Nagar, Nai Basti, Post- Banki, Barabanki (UP)-Pin- 225001, Mob 9415056145, Email- ee.chauhan@gmail.com
7. Ku. Nidhi, 23yrs, Fair Colour,  ht 5 ft,  B.A., (Diploma in Computer). Contact-  Sh Sher Singh, Gram- Alipur, Anand Nagar, Post- Bahdarabad, Dist- Haridwar (uttaranchal) Mob- 9639115629. and..9808013302.
१. सोनी चौहान, ज दि ०६.०९.१९८७,  ५ फिट, गेहुँवा रंग, हाई स्कूल, संपर्क- चंद्रभान सिंह, प्रॉपर्टी डीलर , ग्राम- हर सेवक पुर न. २, पो जंगल लक्ष्मी पुर, जिला गोरखपुर (उ. प्र.) मोब 9336030753.
२. रेनू सिंह, २६ वर्ष, कद- ५'-५", रंग- सांवला, बी ए पास, कंप्यूटर टीचर। 
३. अश्वनी सिंह, २४ वर्ष, इन्टर पास, इलेक्ट्रिक मोटर बाइंडर, ५ फिट, रंग- सांवला, रु. १०,०००/- प्रति माह, संपर्क- राजाराम रिपेयरिंग वर्क्स, डॉ वी एन वर्मा रोड, कचहरी रोड, लखनऊ, फ़ो ०५२२-२६२१२३१, मोब ९४१५००४१५२. 
४. कु पदमा सिंह, सुंदर, ३० वर्ष, ५'-२", शिक्षा- एम. बी. ए , सिग्मा। संपर्क- मि.  सी. सिंह, फ्लैट न.४०१ , जेम्स कोर्ट-३, गणपति चौक, विमान नगर, पुणे-१४, (महा), मोब- ९९६०१६६७८५. 
5. Indrapal singh, DOB- 09-01-1987, boy, Diploma in mechanical engineer, post diploma in CAD/CAM, presently working in JINDAL steel ltd, Dubai (UAE) as a engineer.
Contact- Tarasingh chouhan, Bus Stand, Amraiyapar Kymore, Distt- Katni (MP)
Mob- 9893405160.
6. Chi Udaypratap Singh, M. sc. Maths, studying B ed, 21yrs, Fair colour, 5' -6", B. Sc. or M. Sc will be preferred. Contact- Sh Subhash Chandra Sisodia , (Manager), Vidya Bharti Public School, Gram+post- Kotla, Dist Firozabad U.P., Mob 9997633118.

Sunday, September 8, 2013

आवश्यक निवेदन

'चौहान चेतना' ब्लॉग और वेबसाइट का समाजजन  अधिक से अधिक लाभ लें इस हेतु स्वप्रेरणा से इसे बनाया गया है, जैसाकि  आप सभी जानते हैं  की  विभिन्न अग्रसर समाजों की कई सुविधाओं से युक्त वेब साइट्स इस समय देश में चल रही हैं, इस हेतु हमने भी एक छोटा सा प्रयास किया है. इस सुविधा का अधिक से अधिक लोग लाभ लें इस हेतु 'चौहान चेतना' (प्रिंट एडिशन) प्रमुख से बारम्बार उचित माध्यम से संपर्क कर इसका पता (ब्लॉग एड्रेस) अपनी त्रैमासिक में देने हेतु निवेदन किया लेकिन सफलता नहीं मिली। विदित हो की इसे चलाने में हमारा कोई अनुचित उद्देश्य भी नहीं है. यदि हो सके तो आप में से कोई भी जागरूक समाज सदस्य इसे (पता)  उक्त पत्रिका में छपवा सके तो हम आभारी होंगे।    

Wednesday, September 4, 2013

www.chouhanchetna.webs.com पर क्लिक करें और 'चौहान चेतना' में प्रकाशित वैवाहिक रिश्ते ऑनलाइन भी देखें। (website in process).… यशवंत सिंह कौशिक, इंदौर (म. प्र.)

Friday, August 30, 2013

Prathviraj Chouhan... Jeevni (shesh bhag)

दिल्ली का उत्तराधिकार

महाराजा अनंगपाल के यहाँ कोई पुत्र नहीं था इसकी चिंता उन्हें दिन रत रहती की उनके बाद दिल्ली का उत्तराधिकार कौन संभालेगा। यही विचार कर उन्होंने अपनी पुत्री के समक्ष पृथ्वीराज को दिल्ली का युवराज बनाने की बात कही। फिर उन्होंने अपने दामाद अजमेर के महाराजा सोमेश्वर से भी इस बारे में विचार-विमर्श किया। राजा सोमेश्वर और रानी कर्पूरी देवी ने इसके लिए अपनी सहमती प्रदान कर दी जिसके फलसवरूप पृथ्वीराज को दिल्ली का युवराज घोषित कर दिया गया। 1166 ई० में दिल्लीपति महाराज अनंगपाल की मृत्यु के बाद पृथ्वीराज को विधि पूर्वक दिल्ली का उत्त्रदयितव सौप दिया गया। विद्रोही नागार्जुन का अंत : जब महाराज अनंगपाल की मृत्यु हुयी उस समय बालक पृथ्वीराज की आयु मात्र ११ वर्ष थी। अनंगपाल का एक निकट सम्बन्धी था विग्रह्राज। विग्रह्राज के पुत्र नागार्जुन को पृथ्वीराज का दिल्लिअधिपति बनाना बिलकुल अच्छा नहीं लगा। उसकी इच्छा अनंगपाल की मृत्यु के बाद स्वयं गद्दी पर बैठने की थी, परन्तु जब अनंगपाल ने अपने जीवित रहते ही पृथ्वीराज को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया तो उसके हृदय में विद्रोह की लहरे मचलने लगी। महाराज की मत्यु होते ही उसके विद्रोह का लावा फुट पड़ा। उसने सोचा के पृथ्वीराज मात्र ग्यारह वर्ष का बालक है और युद्ध के नाम से ही घबरा जायेगा। नागार्जुन का विचार सत्य से एकदम विपरीत था। पृथ्वीराज बालक तो जरुर था पर उसके साथ उसकी माता कर्पूरी देवी का आशीर्वाद और प्रधानमंत्री एवं सेनाध्यक्ष कमासा का रण कौशल साथ था। विद्रोही नागार्जुन ने शीघ्र ही गुडपुरा (अजमेर) पर चढाई कर दी। गुडपुरा (अजमेर) के सेनिको ने जल्दी ही नागार्जुन के समक्ष अपने हथियार डाल दिए। अब नागार्जुन का साहस दोगुना हो गया। दिल्ली और अजमेर के विद्रोहियों पर शिकंजा कसने के बाद सेनापति कमासा ने गुडपुरा की और विशाल सेना लेकर प्रस्थान किया। नागार्जुन भी भयभीत हुए बिना अपनी सेना के साथ कमासा से युद्ध करने के लिए मैदान में आ डाटा। दोनों तरफ से सैनिक बड़ी वीरता से लड़े। अंतत: वही हुआ जिसकी सम्भावना थी। कमासा की तलवार के सामने नागार्जुन का प्राणांत हो गया।

पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेमकथा

पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेमकथा राजस्थान के इतिहास में स्वर्ण से अंकित है। वीर राजपूत जवान पृथ्वीराज चौहान को उनके नाना सा. ने गोद लिया था। वर्षों दिल्ली का शासन सुचारु रूप से चलाने वाले पृथ्वीराज को कन्नौज के महाराज जयचंद की पुत्री संयोगिता भा गई। पहली ही नजर में संयोगिता ने भी अपना सर्वस्व पृथ्वीराज को दे दिया, परन्तु दोनों का मिलन इतना सहज न था। महाराज जयचंद और पृथ्वीराज चौहान में कट्टर दुश्मनी थी।
राजकुमारी संयोगिता का स्वयंवर आयोजित किया गया, जिसमें पृथ्वीराज चौहान को नहीं बुलाया गया तथा उनका अपमान करने हेतु दरबान के स्थान पर उनकी प्रतिमा लगाई गई। ठीक वक्त पर पहुँचकर संयोगिता की सहमति से महाराज पृथ्वीराज उसका अपहरण करते हैं और मीलों का सफर एक ही घोड़े पर तय कर दोनों अपनी राजधानी पहुँचकर विवाह करते हैं। जयचंद के सिपाही बाल भी बाँका नहीं कर पाते।
उसकी आँखें गरम सलाखों से जला दी गईं। अंत में पृथ्वीराज के अभिन्न सखा चंद बरदाई ने योजना बनाई। पृथ्वीराज शब्द भेदी बाण छोड़ने में माहिर सूरमा था। चंद बरदाई ने गोरी तक इसकी इस कला के प्रदर्शन की बात पहुँचाई। गोरी ने मंजूरी दे दी। प्रदर्शन के दौरान गोरी के शाबास लफ्ज के उद्घोष के साथ ही भरी महफिल में अंधे पृथ्वीराज ने गोरी को शब्दभेदी बाण से मार गिराया तथा इसके पश्चात दुश्मन के हाथ दुर्गति से बचने के लिए दोनों ने एक-दूसरे का वध कर दिया।
अमर प्रेमिका संयोगिता को जब इसकी जानकारी मिली तो वह भी वीरांगना की भाँति सती हो गई। दोनों की दास्तान प्रेमग्रंथ में अमिट अक्षरों से लिखी गई।

राजनैतिक नीति

पृथ्वीराज ने अपने समय के विदेशी आक्रमणकारी मुहम्मद गौरी को कई बार पराजित किया। युवा पृथ्वीराज ने आरम्भ से ही साम्राज्य विस्तार की नीति अपनाई। पहले अपने सगे-सम्बन्धियों के विरोध को समाप्त कर उसने राजस्थान के कई छोटे राज्यों को अपने क़ब्ज़े में कर लिया। फिर उसने बुंदेलखण्ड पर चढ़ाई की तथा महोबा के निकट एक युद्ध में चदेलों को पराजित किया। इसी युद्ध में प्रसिद्ध भाइयों, आल्हा और ऊदल ने महोबा को बचाने के लिए अपनी जान दे दी। पृथ्वीराज ने उन्हें पराजित करने के बावजूद उनके राज्य को नहीं हड़पा। इसके बाद उसने गुजरात पर आक्रमण किया, पर गुजरात के शासक 'भीम द्वितीय' ने, जो पहले मुइज्जुद्दीन मुहम्मद को पराजित कर चुका था, पृथ्वीराज को मात दी। इस पराजय से बाध्य होकर पृथ्वीराज को पंजाब तथा गंगा घाटी की ओर मुड़ना पड़ा।

जयचंद्र का विद्वेश

कन्नौज का राजा जयचंद्र पृथ्वीराज की वृद्धि के कारण उससे ईर्ष्या करने लगा था। वह उसका विद्वेषी हो गया था। उन युद्धों से पहिले पृथ्वीराज कई हिन्दू राजाओं से लड़ाइयाँ कर चुका था। चंदेल राजाओं को पराजित करने में उसे अपने कई विख्यात सेनानायकों और वीरों को खोना पड़ा था। जयचंद्र के साथ होने वाले संघर्ष में भी उसके बहुत से वीरों की हानि हुई थी। फिर उन दिनों पृथ्वीराज अपने वृद्ध मन्त्री पर राज्य भार छोड़ कर स्वयं संयोगिता के साथ विलास क्रीड़ा में लगा हुआ था। उन सब कारणों से उसकी सैन्य शक्ति अधिक प्रभावशालिनी नहीं थी, फिर भी उसने गौरी के दाँत खट्टे कर दिये थे।
सं. ११९१ में जब पृथ्वीराज से मुहम्मद गौरी की विशाल सेना का सामना हुआ, तब राजपूत वीरों की विकट मार से मुसलमान सैनिकों के पैर उखड़ गये। स्वयं गौरी भी पृथ्वीराज के अनुज के प्रहार से बुरी तरह घायल हो गया था। यदि उसका खिलजी सेवक उसे घोड़े पर डाल कर युद्ध भूमि से भगाकर न ले जाता, तो वहीं उसके प्राण पखेरू उड़ जाते। उस युद्ध में गौरी की भारी पराजय हुई थी और उसे भीषण हानि उठाकर भारत भूमि से भागना पड़ा था। भारतीय राजा के विरुद्ध युद्ध अभियान में यह उसकी दूसरी बड़ी पराजय थी, जो अन्हिलवाड़ा के युद्ध के बाद सहनी पड़ी थी। (kramasha)