It is a social organisation of a Rajput community in India. It is maintained by Yeshwant Singh Kaushik (Indore). Blog courtesy- Yeshwant Singh Kaushik, Indore.
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Tuesday, May 18, 2010
क्या इतिहास यूँ ही गाता रहेगा ?
पाइथागोरस प्रमेय - रेखागणित में पढाई जाने वाली एक प्रमेय को पाइथागोरस प्रमेय कहा जाता है, कभी इसका नाम पायथागोरस प्रमेय , तो कभी बौधायन पाइथागोरस के रूप में चलता रहता है। जबकि इतिहास बताता है की इस प्रमेय की खोज भारतीय गणितग्य बौधायन ने पहले ही कर ली थी। पाइथागोरस केवल इसे सीखने के लिए भारत आया और उसने इसका प्रचार अपने देश में किया। जब इसकी खोज व प्रचार संवर्धन बौधायन ने किया तो इसे पाइथागोरस क्यों कहते हैं? अकबर महान - यदि हम अकबर को महान कहते हैं तो देशभक्त सपूतों ने जिन्होंने अपना सर्वस्व बलिदान कर अकबर से टक्कर ली उनको क्या कहेंगें ? विचार करो , जिनके शासनकाल में कई विद्रोह तथा हत्याएं हुईं हैं। उस शासक को महान कैसे कहा जा सकता है? अकबर महान थे तो राणाप्रताप क्या थे? यदि महान कहना है तो चन्द्रगुप्त व समुद्रगुप्त को कहें जिनके शासनकाल में शांति थी, चोरी नहीं होती थी। सिकंदर महान- क्या देश के लुटेरे को भी महान का दर्जा दिया जा सकता है? दुनिया के बहुत बड़े भू-भाग का बादशाह सिकंदर भारत के एक सन्यासी के मन को नहीं जीत सका तो वह विश्व-विजेता व महान कैसे कहा जा सकता है? इस लुटेरे का अंत भी लुटेरे की तरह हुआ। आज हम अपने इतिहास को भुला बैठे हैं तथा दूसरों की बातों को सही मान लेते हैं। यदि हम सभी जागरूक व सच्चे भारत माँ के सपूत हैं तो ऐसी चीजों पर अवश्य ध्यान देना चाहिए। देश के इतिहास का शुद्धिकरण किया जाना आवश्यक है। सत्य बात को स्वीकारने में डर नहीं होना चाहिए- सुभाष चन्द्र सिसोदिया (जिला बौद्धिक प्रमुख, राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ ,फिरोजाबाद , उत्तर प्रदेश, ('चौहान चेतना ' से उद्धृत )
Wednesday, May 12, 2010
नारी शिक्षा का प्रसार जरूरी ( सम्पादकीय "चौहान चेतना")
२१ वीं सदी की महिलाओं को 'सदी की महिलाऐं' कहकर निश्चय ही पुरुष प्रधान समाज ने उसे सम्मान देने की कोशिश की है। इस सदी के प्रारंभिक चरण में नारी उत्थान के उद्देश्य से महिला सशक्तिकरण जैसी योजना को विशेष महत्त्व दिया जा रहा है। परन्तु आज भी गाँव में नारी की दशा देखकर उसके सुधार के पक्ष में उठाए गए क़दमों की औचित्यहीनता पर सवाल खड़े हो जाते हैं। हकीकत इस तथ्य के कोसों करीब नहीं है। मीडिया का उपयोग कर ग्रामीणों में जाग्रति लाने की असफल कोशिश जारी है। विशेषकर नारी शिक्षा के प्रति लोगों की सोच तो जैसे कुंद ही हो चुकी है। साधन-संपन्न परिवार वाले भी अपनी बेटियों को बड़ी मुश्किल से कक्षा ५ या ८ तक पढ़ाकर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझते हैं। इस बारे में उनकी राय जानो तो कहते हैं की 'जब एक से एक पढ़े लिखे रोजगार की तलाश में खाक छानते फिरते हैं तो फिर ऐसे में लड़कियों को ज्यादा पढ़ाने से क्या फायदा।' उनका शिक्षा से तात्पर्य नौकरी से होता है, जो आज के बदलते दौर में बहुत घातक सोच कही जा सकती है। शिक्षा तो इन्सान की मूलभूत आवश्यकता है, यही उसके जीवन की पहली सीढ़ी का काम करती रहे। शिक्षा का मतलब नौकरी जैसी सोच से परहेज करें और जीवन में शिक्षा के महत्त्व को स्वीकारें। लड़कियों को उचित शिक्षा देकर इस योग्य बनायें ताकि वे भविष्य में किसी भी मुश्किल का साहसपूर्वक सामना कर सकें। नारी शिक्षा के प्रसार से ही दहेज़ जैसी सामाजिक बुरे को रोकने में तथा आगे आने वाली पीढ़ी को शिक्षित करने में सफलता मिलेगी। शिक्षित नारी का दायित्व - वर्तमान में यदि शिक्षित महिलाऐं अपनी क्षमता का सही उपयोग करें तो उनका कर्तव्य बन जाता है की वे परंपरा और रूढ़ियों के बोझ में दबी भारतीय नारी को उस दुखद स्थिति से उबारने के लिए ईमानदारी से प्रयत्न करें। पर अनुकरण वृत्ति का अभिशाप कहें या आधुनिकता का दंभ, तथाकथित प्रगतिशील स्त्रियाँ उनकी तरफ देखना भी नहीं चाहती, उनसे बात करना या उन्हें सहयोग देना तो दूर रहा। विवेक बुद्धि से लिए गए निर्णय और उन्हें क्रियान्वित करने का साहस यदि रूढ़ियों से बंधने वाली नारी की विशेषता बनता तो महिलाऐं शाश्क्ति-स्वरूपा बनकर सामने आतीं। शिक्षित आधुनिका नारी जहाँ परंपरा के अंधविरोध और प्रक्रिया से ग्रस्त है, वहीँ अशिक्षित परंपरा भक्त नारी लम्बे समय से चले आ रहे रीति-रिवाजों से चिपके रहने में ही भलाई देखती है। प्रगतिशीलता के नाम पर इन दोनों का अन्धानुकरण न किया जाए बल्कि उन महिलाओं को ऊंचा उठाने की कोशिश की जाए जो आर्थिक तंगी के चलते हासिये पर जा रही हैं या जो समय के साथ जीने को विवश हो रही है- सुक्खनलाल सिंह चौहान, संपादक- 'चौहान चेतना'
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