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Wednesday, April 13, 2011

सामाजिक जागरूकता

         सामाजिक जागरूकता/चेतना का मतलब है जाग्रत अवस्था में रहना,  जागते हुए भी हमारा अन्तःकरण कुंठित  है, हमारा विवेक काम नहीं करताहै, हमारे सोचने का दायरा बहुत संकुचित रहता है, हम अपने इर्द-गिर्द अन्य समाज के लोगों को देखकर उनसे प्रेरणा नहीं लेते हैं, हम जितने में है उससे  ऊपर की नहीं सोचते. हमारा मोरल दिन-प्रतिदिन गिरता जा रहा है. हम क्यों नहीं  बड़े-बड़े सपने देखते हैं. भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति डा. अब्दुल कलाम कहते हैं की हमें बड़े से बड़ा सपना देखना चाहिए और उसे साकार करने की लिए निरंतर कठिन परिश्रम करना चाहिए. मैं मानता हूँ कि इस संसार में किसी काम के लिए पैसे ली जरूरत पड़ती है, पैसा बहुत कुछ है लेकिन पैसा सब कुछ नहीं है. वर्तमान में योग और अध्यात्म के शिखर पर पहुँचने वाले स्वामी रामदेव जी सोलह  साल कि उम्र में जब घर से निकले थे तो उनके पास सिर्फ ३०० रु थे लेकिन आज दुनिया में उनको कौन नहीं जानता. उन्होंने सम्पूर्ण भारतवर्ष को २०२० तक एक बार फिर से सोने कि चिड़िया बनाने का सन्देश  दिया  है. ऐसे अवसरों के लिए भी हमेशा संगठित और जाग्रत रहना पड़ेगा  क्यों कि ऐसा न हो कि हम हमेशा कि तरह आखिरी लाइन में खड़े रहें और किसी तरह का सामाजिक लाभ मिलने से वंचित हो जाएँ. किसी भी काम को करने के लिए दृढ संकल्प होना चाहिए. बड़ी सोच, कड़ी मेहनत, पक्का इरादा आपको उन्नति कि छोटी पर ले जा सकता है, यह जरूर है कि आपको समय-समय पर मार्गदर्शन, सहयोग, अर्थ कि आवश्यकता पड़ सकती है. जिसके लिए समाज के अग्रणी, विशिष्ट लोगों को आज आगे आना पड़ेगा. हम अपने समाज के बच्चों को कभी भी हीनभावना का शिकार न होने दें बल्कि उनमें इतनी उर्जा, आत्मगौरव का भाव भर दें कि वे अपना मार्ग खुद प्रशस्त करने लायक हो जाएँ. वे किसी पर आश्रित न हों और किसी के बहकावे में न आएं. हमारे समाज में कम उम्र के बच्चों पर कोई ध्यान नहीं देता जब कि ८० प्रतिशत बच्चों का आइ. क्यु. पाँच वर्ष कि आयु में ही पूरा हो जाता है. बाकि २० प्रतिशत पूरे जीवन में संचित हो जाता है. अगर हमें अपनी अगली पीढ़ी को सुधारना है तो अपने पाँच वर्ष तक के बच्चों पर विशेष ध्यान देना होगा. उनके रहन-सहन, खान-पान, स्वास्थ्य एवं विकास कि समुचित व्यवस्था करनी पड़ेगी. यहीं से हमारे सुयोग्य समाज का निर्माण शुरू होता है. कहावत है- (चाइल्ड इस दि फादर आफ  मेन) - बच्चा बड़ा होकर बाप बनता है. जैसा बच्चा होगा, वैसे ही समाज कि संरचना होगी. तो आइये, हम अपने नन्हे-मुन्नों के लालन-पालन में भरपूर ध्यान दें जिससे उनका सर्वांगीण विकास हो सके. जिससे वे बड़े होकर समाज कि रचना करें और हमारा अगला समाज किसी दूसरे के आगे अपने को कमजोर या लाचार महसूस न करे. सभी के सामने कंधे से कन्धा मिलाकर उनमें चलने कि शक्ति हो, तीव्र बुद्धि हो, पूर्ण विकास हो और उनमें समाज मे ही नहीं बल्कि देश कि बड़ी से बड़ी ऊँचाइयों को छूने कि शक्ति हो, ताकत और बुद्धि हो. मैं यह तो नहीं जानता कि हमारा समाज कब सुधरेगा लेकिन उसके  प्रवर्तक और कार्यवाहक हमारे भावी नन्हे-मुन्ने ही होंगे.           _ अर्जुन सिंह, सेवानिवृत्त रेल इंजिनियर , वाराणसी

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