इंसानी जिंदगी में विवाह एक बेहद महत्वपूर्ण घटना है. इसमें दो इन्सान जीवन भर साथ में मिलकर धर्म के रास्ते से जीवन लक्ष्य की प्राप्ति का प्रयास करते हैं. हर परिस्थिति में एक-दूसरे का साथ निभाने का संकल्प लिया जाता है. संकल्प या वचन सदैव देव-स्थानों या देवताओं की उपस्थिति में लेने का प्रावधान होता है. इसीलिए विवाह के सात फेरे वचन अग्नि के सामने लिए जाते हैं. फेरे सात ही क्यों लिए जाते है? इसका कारण सात की महत्ता है. शास्त्रों में सात के
बजाय चार फेरों का वर्णन भी मिलता है तथा चार फेरों में से तीन में दुल्हन तथा एक में दूल्हा आगे रहता है. वर्तमान में हिन्दू संस्कृति से होने वाले में सात फेरों का ही प्रचलन है. बगैर सप्तपदी के विवाह अधूरा माना जाता है. हमारे जीवन जगत और विवाह में इस सात अंकों का विशेष महत्त्व क्यों और कैसे है, आइये जानें--- सूर्य के प्रकाश में रंगों की संख्या भी सात होती है, संगीत में भी सात स्वर होते हैं- सा, रे, गा, माँ, प् ध, नि. पृथ्वी सहित लोकों की संख्या भी सात है. द्वीपों तथा समुद्रों की संख्या भी सात ही है. प्रमुख पदार्थ भी सात ही हैं- गोरोचन, चन्दन, स्वर्ण, शंख, दर्पण और मणि जो की शुद्ध माने जाते हैं. प्रमुख क्रियाएँ भी सात ही हैं- शौच, मुखशुद्धि,स्नान, ध्यान, भोजन आदि, नित्य पूज्यनीय जनों की संख्या भी सात है- ईश्वर, गुरु, माता, पिता, सूर्य, अग्नि तथा अतिथि. इंसानी बुराइयों की संख्या भी सात है, यथा- ईर्ष्या, क्रोध, मोह, घृणा, तथा कुविचार आदि. वेदों के अनुसार सात तरह के स्नान मन्त्र हैं- स्नान भौम, स्नान अग्नि, स्नावाल्य, स्नान दिव्य, स्नान करुण, और मानसिक स्नान.
सात अंक की इस रहस्यात्मक महत्ता के कारण ही प्राचीन ऋषि-मुनियों या नीति-निर्माताओं ने विवाह में सात फेरों को शामिल किया है. अपने परिजनों, सम्बन्धियों और मित्रों की उपस्थिति में वर-वधु देवतुल्य अग्नि की सात परिक्रमा करते हैं कि हमारा प्रेम सात समुद्रों जितना गहरा हो. हर दिन उसमें सात स्वरों का माधुर्य हो. दाम्पत्य में जीवन के सातों रंगों का प्रकाश फैले. दोनों नवयुगल एक होकर इतने सद्कर्म करें कि हमारी ख्याति सातों लोकों में सदैव बनी रहे..... ओमप्रकाश चौहान, इंदौर
बजाय चार फेरों का वर्णन भी मिलता है तथा चार फेरों में से तीन में दुल्हन तथा एक में दूल्हा आगे रहता है. वर्तमान में हिन्दू संस्कृति से होने वाले में सात फेरों का ही प्रचलन है. बगैर सप्तपदी के विवाह अधूरा माना जाता है. हमारे जीवन जगत और विवाह में इस सात अंकों का विशेष महत्त्व क्यों और कैसे है, आइये जानें--- सूर्य के प्रकाश में रंगों की संख्या भी सात होती है, संगीत में भी सात स्वर होते हैं- सा, रे, गा, माँ, प् ध, नि. पृथ्वी सहित लोकों की संख्या भी सात है. द्वीपों तथा समुद्रों की संख्या भी सात ही है. प्रमुख पदार्थ भी सात ही हैं- गोरोचन, चन्दन, स्वर्ण, शंख, दर्पण और मणि जो की शुद्ध माने जाते हैं. प्रमुख क्रियाएँ भी सात ही हैं- शौच, मुखशुद्धि,स्नान, ध्यान, भोजन आदि, नित्य पूज्यनीय जनों की संख्या भी सात है- ईश्वर, गुरु, माता, पिता, सूर्य, अग्नि तथा अतिथि. इंसानी बुराइयों की संख्या भी सात है, यथा- ईर्ष्या, क्रोध, मोह, घृणा, तथा कुविचार आदि. वेदों के अनुसार सात तरह के स्नान मन्त्र हैं- स्नान भौम, स्नान अग्नि, स्नावाल्य, स्नान दिव्य, स्नान करुण, और मानसिक स्नान.
सात अंक की इस रहस्यात्मक महत्ता के कारण ही प्राचीन ऋषि-मुनियों या नीति-निर्माताओं ने विवाह में सात फेरों को शामिल किया है. अपने परिजनों, सम्बन्धियों और मित्रों की उपस्थिति में वर-वधु देवतुल्य अग्नि की सात परिक्रमा करते हैं कि हमारा प्रेम सात समुद्रों जितना गहरा हो. हर दिन उसमें सात स्वरों का माधुर्य हो. दाम्पत्य में जीवन के सातों रंगों का प्रकाश फैले. दोनों नवयुगल एक होकर इतने सद्कर्म करें कि हमारी ख्याति सातों लोकों में सदैव बनी रहे..... ओमप्रकाश चौहान, इंदौर