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Sunday, November 27, 2011

विवाह में सात फेरे ही क्यों ! (अंक-जुलाई,अगस्त,सितम्बर २०११)

इंसानी जिंदगी में विवाह एक बेहद महत्वपूर्ण घटना है. इसमें दो इन्सान जीवन भर साथ में मिलकर धर्म के रास्ते से जीवन लक्ष्य की प्राप्ति का प्रयास करते हैं. हर परिस्थिति में एक-दूसरे का साथ निभाने का संकल्प लिया जाता है. संकल्प या वचन सदैव देव-स्थानों या देवताओं की उपस्थिति में लेने का प्रावधान होता है. इसीलिए विवाह के सात फेरे वचन अग्नि के सामने लिए जाते हैं. फेरे सात ही क्यों लिए जाते है? इसका कारण सात की महत्ता  है. शास्त्रों में सात के
बजाय चार  फेरों का वर्णन भी मिलता है तथा चार फेरों में से तीन में दुल्हन तथा एक में दूल्हा आगे रहता है. वर्तमान में हिन्दू संस्कृति से होने वाले में सात फेरों का ही प्रचलन है. बगैर सप्तपदी के विवाह अधूरा माना जाता है. हमारे जीवन जगत और विवाह में इस सात अंकों का विशेष महत्त्व क्यों और कैसे है, आइये जानें--- सूर्य के प्रकाश में रंगों की संख्या  भी सात होती है, संगीत में भी सात स्वर होते हैं- सा, रे, गा, माँ, प् ध, नि. पृथ्वी  सहित  लोकों की संख्या भी सात  है. द्वीपों तथा समुद्रों की संख्या भी सात ही है. प्रमुख पदार्थ भी सात ही हैं- गोरोचन, चन्दन, स्वर्ण, शंख,  दर्पण  और मणि जो की शुद्ध माने जाते हैं. प्रमुख क्रियाएँ भी सात ही  हैं- शौच, मुखशुद्धि,स्नान, ध्यान, भोजन आदि,  नित्य पूज्यनीय जनों की संख्या भी सात है- ईश्वर, गुरु, माता, पिता, सूर्य, अग्नि तथा अतिथि. इंसानी बुराइयों की संख्या भी सात है, यथा- ईर्ष्या, क्रोध, मोह, घृणा, तथा कुविचार आदि.  वेदों के अनुसार सात तरह के स्नान मन्त्र हैं- स्नान भौम, स्नान अग्नि, स्नावाल्य, स्नान दिव्य, स्नान करुण, और मानसिक स्नान.
                    सात अंक की इस रहस्यात्मक  महत्ता के कारण ही प्राचीन ऋषि-मुनियों या नीति-निर्माताओं ने विवाह में सात फेरों को शामिल किया है. अपने परिजनों, सम्बन्धियों और मित्रों की उपस्थिति में वर-वधु देवतुल्य अग्नि की सात परिक्रमा करते हैं   कि हमारा प्रेम सात समुद्रों जितना गहरा  हो. हर दिन उसमें सात स्वरों का माधुर्य हो. दाम्पत्य में जीवन के सातों रंगों का प्रकाश फैले. दोनों नवयुगल एक होकर इतने सद्कर्म करें कि हमारी ख्याति सातों लोकों में सदैव बनी रहे.....          ओमप्रकाश चौहान, इंदौर

सेवाभाव (अंक-जुलाई,अगस्त,सितम्बर २०११)

मानव होने के नाते जब तक हम एक-दूसरे के दुःख-दर्द में साथ नहीं निभाएँगे तब तक इस जीवन की सार्थकता सिद्ध नहीं होगी. वैसे तो हमारा परिवार भी समाज की ही एक इकाई है, किन्तु इतने तक ही सीमित रहने से सामाजिकता का उद्देश्य पूरा नहीं होता. हमारे जीवन का अर्थ तभी पूरा होगा जब हम समाज को ही परिवार माने. 'वसुधैव कुटुम्बकम' की भावना को हम जितना अधिक से अधिक विस्तार देंगे, उतनी ही समाज में सुख-शांति और समृद्धि फैलेगी. मानव होने के नाते एक-दूसरे के काम आना भी हमारा प्रथम कर्तव्य है. हमें अपने सुख के साथ-साथ दुसरे के सुख का भी ध्यान रखना चाहिए. अगर हम सहनशीलता, संयम, धैर्य, सहानुभूति, और प्रेम को आत्मसात करना चाहें तो इसके लिए हमें संकीर्ण मनोवृत्तियों को छोड़ना होगा. धन,  संपत्ति और वैभव का सदुपयोग तभी है जब उसके साथ-साथ दूसरे भी इसका लाभ उठा सकें. आत्मोन्नति के लिए इश्वर प्रदत्त जो गुण सदैव हमारे रहता है वह है सेवाभाव.  जब तक  सेवाभाव को जीवन में पर्याप्त स्थान नहीं दिया जाएगा तब तक आत्मोन्नति का मार्ग प्रशस्त नहीं हो सकता. मानव जीवन में सुख व् दुःख प्रथक नहीं हैं, उन्हें आत्मसात करना ही है. इनके साथ जीवन में समायोजन करना है. यह मानव प्रकृत्ति है की जब हम दूसरों को सुखी देखते हैं तो हमारा दुःख कम होता है और जब दूसरों को सुखी देखते हैं तो यह जानने की चेष्टा भी नहीं करते की उसके सुखी होने का कारण क्या है? बल्कि कुछ लोगों को ईर्ष्या भी होने लगती है. अपने पुरुषार्थ और परिश्रम द्वारा सुख प्राप्त करने से स्थायी सुख-शांति तथा आत्म-संतोष होता है. किसी के सहारे सुख अर्जित कर लेने से कुछ समय के लिए तो सुखानुभूति होगी, किन्तु उसका अंत दुखद या विपरीत परिस्थितियों ही होंगी. अतः सुख-दुःख को समान समझकर हमें संयम, धैर्य एवं आत्मीयता का अनुपालन करना चाहिए. कहा भी गया है की भलाई करने से  भलाई मिलती है  और बुराई करने से बुराई मिलती है........ डा. राजेंद्र जी  (अंक-जुलाई,अगस्त,सितम्बर २०११)

Friday, August 5, 2011

Chauhan Community in India









Chauhans are found in the state of Uttar Pradesh in India .[1] They are traditionally salt makers, and also known as Nuvra, Sambhri, Sambhri Chauhan and Jhumana Parmar.

















History and origin

The word Lun or nun means salt in the Hindi language, which itself is the corruption of the word lavan, which is the Sanskrit word For salt. All the Rajput in Rajasthan where engaged in this profession of salt making particularly in Ajmer, Pushkar, Luni, Pulera,Jhuman, Dausa, Bewar and Sambhar. The community is Chauhan Rajput ancestry. They have thirteen main sub-groups, the Sambhri Chauhan, Bachgotri,Singh ,Makawana , kaushik, parmar, parihar, solanki, tomar, tawar, bhati, chandravanshi, gahlot, rathod and sainvanshi. They came to U.P from Rajasthan in 16th century.They are also known as visthapit rajput(Migrated Rajput) or chauhan rajput or Lonia Rajput.[2] ui



 Present circumstances

The traditional occupation of the community was making of salt and they were soldier in chauhan ruler of Ajmer, Ranthambore, Bundi, Kota and Udaipur. They are now engaged in agriculture, and are a community of farmers having big & in some places moderate farmland. They r now very prosperous in business in city like Delhi, Mumbai,Surat, Vapi, Chandigadh, Gurgaon, Ghaziabad, Nodia, and other city of India. Their main concentrations are in the districts of Kanpur, Lukhnow, Ghazipur, Jaunpur, Pratapgarh, Varanasi. Apart from Utter Pradesh, Loniya caste is also found in Vindhya region of Madhya Pradesh in the district of Rewa, Satna, Shahdol and Sidhi.In Punjab they are know as Kharwal, Loniwal,Junjuva,Rajwar, Chauhan,Bais and Lunawat.Their one branch is in Pakistan known as Luni/Loni.Loni is a warrior branch of Durrani Pashtoons and are related to Qarabagh of Afghanistan. They came to the sub-continent in the era of the Afghan emperor Ahmad Shah Durrani. They were then called as "OX" due to their warrior nature. A huge population of Luni tribe still exists in the Uttar Pradesh District of India. They moved through Kashmir, Tank, Dera Ismail Khan, and Musa Khel to Khan Muhammad Kot and from there they attacked Alambar, Lakhi, Samaolang (Chamalung) and Thal Chutiali and got hold of the vast area, which then got a single name “LONI”. The boundaries of Loni are extended to Kohlu, Musa Khel, Barkhan, Loralai and Dukki. They have fought several decisive wars against neighboring castes like MARRI, KAKAR and other tribes of the area.

In India community are Hindu community, and worship Kuldevi such as Shakumbaradevi, Marimai, Nakle Mata,Durga maa,Kali mata and Jakhai maa. They still practice bali pratha(Sacrifice Goat & Bull) which they offer to their kuldevi. The luni rajput have a caste association, the Rajput Maryada Sabha, headquartered in Kanpur. In 1883 people of this community has started Akhilbhartiya Shree Rajput Dharmpracharniya Mahasabha under the leadership of Thakur Lalamathura Prasad Singh and they have found their lost glory after some time they have change the name of this Mahasabha to Shree Rajput Heetkarni Mahasabha.In 1984 Shree Rajput Heetkarni Mahasabha merger in Akhail Bharti Kshtariya Mahasabha at Pratapgarh, Uttar Pradesh. Now they r known as Chauhan rajput of Eastern Uttar Pradesh.[3]









 References

1.^ People of India Uttar Pradesh Volume XLII Part Two edited by A Hasan & J C Das pages 907 to 912

2.^ People of India Uttar Pradesh Volume XLII edited by A Hasan & J C Das page 907

3.^ People of India Uttar Pradesh Volume XLII edited by A Hasan & J C Das page 911

Categories: Social groups of Uttar Pradesh
Indian castes
Hindu communities
Saltmaking castes
                                                                          Information collected by- Yeshwant Singh Kaushik, ( Above complete information given in Wikipedia, the free encyclopedia)
























































Sunday, April 24, 2011

संपादकीय, अंक- जनवरी, फ़रवरी, मार्च २०११

पत्रिका प्रकाशन : अतीत से अब तक 

सभी स्वजाति बंधुओं, पत्रिका सदस्यों, पाठकों, लेखकों, कवियों, एवं विज्ञापनदाताओं को नव्-वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ. 
           बिरादरी समाज में १९७५ के दशक में राजनैतिक-सामाजिक चेतना तथा समाज की गतिविधियों, मीटिंगों, गोष्ठी, सम्मलेन आदि की जानकारी देने के लिए कोई उचित माध्यम नहीं था. उस समय तक समाज का कोई नेता सांसद-विधायक नहीं होता था. किसी को बिरादरी की सही-सही या  अनुमानित   जनसँख्या    का पता  नहीं था. लगता  था हमारी बिरादरी मात्र  ४-६   जिलो  तक ही सीमित  है, उस पर भी कुछ घरों की जानकारी हुआ करती थी. इन जगहों में कहीं-कहीं, कभी-कभी मीटिंग होती रहती थी. जिसके प्रचार-प्रचार के अभाव या हमारी ही जानकारी के अभाव में एक-दुसरे से परिचय, मेलजोल कम हो पाता था. हम कम  संख्या में हैं, गरीब- मजदूर-अल्पशिक्षित या जो भी हैं- असंगठित हैं. बगैर प्रचार-प्रसार या संगठन के हम कोई बड़ा या अच्छा काम नहीं कर सकते. समाज में न तो कोई जागरूकता है, न चेतना. आगे बढ़ने का, विकास कोई रास्ता समझ नहीं आ रहा था की चेतना यात्रा कहाँ से प्रारंभ की जाए. हाँ, इस बात की चिंता समाज के कुछ बुद्धिजीवी वर्ग को जरूर थी. इसी वर्ग के सोच और विचार को लेकर १९७६ में कानपूर में मीटिंग और सभाओं का दौर चला. एक मीटिंग का आयोजन श्री बी. एल. सिंह के यहाँ भी हुआ, जिसमें समाज के बहुत से लोगों की उपस्थिति रही और  निर्णय  हुआ  कि एक पत्रिका निकाली जाये, जो प्रचार-प्रसार के साथ हम सब के बीच सेतु का कम करे. आखिरकार सब की सहमति से  'राजपूत मर्यादा' नमक पत्रिका सर्व  श्री माताबदल आर्य, सुक्खनलाल चौहान, अंगनूसिंह, कुंवरसिंह, लल्लुसिंह, निरंजन सिंह, मोती सिंह, धर्मदेव शास्त्री, राजाराम सिंह, तारा सिंह, अदि लोगों के सहयोग से प्रकाशित होने लगी. मुद्रण का कार्य महेश्वरी प्रेस, बांदा में ही होता था. कई वर्षों के सफल प्रकाशन के बाद कुछ कारणोंवश  पत्रिका बांदा की जगह कानपूर में मुद्रित/प्रकाशित होने लगी. इसके बाद समाजसेवा का संकल्प लेते हुए कालांतर में राजपूत परिचायिका,  रनथंभोरी क्षत्रिय वंशावली व् परिचायिका, सम्राट प्रथ्वीराज चौहान की गौरवगाथा, मंगल-सम्बन्ध और अब १० वर्षों से लगातार प्रकाशित होने वाली पत्रिका चौहान चेतना के प्रकाशन से हमारी समाज सेवा हो रही है. परिणाम आप सबके सामने है- सम्पूर्ण भारत में रहने वाले बिरादरी के लोगों की जानकारी हुई, समाज में चेतना-जागरूकता आई, परिचय-मेलजोल बाधा, दूर-दूर तक शादी-सम्बन्ध हुए, सभी ने एक-दूसरे की भावनाओं तथा सामाजिक समस्याओं  को समझा, साथी ही सामाजिक-राजनैतिक चेतना भी बढ़ी. लोगों के आचार-विचार, सोच में बदलाव आया है, विकास के नए-नए रास्ते खुले हैं., आशा-उत्साह का संचार हुआ है, आपसी विश्वास बाधा है. अब आगे-आगे देखिये होता है क्या? अगले अंक में नै ख़बरों के साथ फिर मिलेंगे. जय हिंद, जय समाज.  सुक्खनलाल चौहान संपादक  

Wednesday, April 13, 2011

सामाजिक जागरूकता

         सामाजिक जागरूकता/चेतना का मतलब है जाग्रत अवस्था में रहना,  जागते हुए भी हमारा अन्तःकरण कुंठित  है, हमारा विवेक काम नहीं करताहै, हमारे सोचने का दायरा बहुत संकुचित रहता है, हम अपने इर्द-गिर्द अन्य समाज के लोगों को देखकर उनसे प्रेरणा नहीं लेते हैं, हम जितने में है उससे  ऊपर की नहीं सोचते. हमारा मोरल दिन-प्रतिदिन गिरता जा रहा है. हम क्यों नहीं  बड़े-बड़े सपने देखते हैं. भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति डा. अब्दुल कलाम कहते हैं की हमें बड़े से बड़ा सपना देखना चाहिए और उसे साकार करने की लिए निरंतर कठिन परिश्रम करना चाहिए. मैं मानता हूँ कि इस संसार में किसी काम के लिए पैसे ली जरूरत पड़ती है, पैसा बहुत कुछ है लेकिन पैसा सब कुछ नहीं है. वर्तमान में योग और अध्यात्म के शिखर पर पहुँचने वाले स्वामी रामदेव जी सोलह  साल कि उम्र में जब घर से निकले थे तो उनके पास सिर्फ ३०० रु थे लेकिन आज दुनिया में उनको कौन नहीं जानता. उन्होंने सम्पूर्ण भारतवर्ष को २०२० तक एक बार फिर से सोने कि चिड़िया बनाने का सन्देश  दिया  है. ऐसे अवसरों के लिए भी हमेशा संगठित और जाग्रत रहना पड़ेगा  क्यों कि ऐसा न हो कि हम हमेशा कि तरह आखिरी लाइन में खड़े रहें और किसी तरह का सामाजिक लाभ मिलने से वंचित हो जाएँ. किसी भी काम को करने के लिए दृढ संकल्प होना चाहिए. बड़ी सोच, कड़ी मेहनत, पक्का इरादा आपको उन्नति कि छोटी पर ले जा सकता है, यह जरूर है कि आपको समय-समय पर मार्गदर्शन, सहयोग, अर्थ कि आवश्यकता पड़ सकती है. जिसके लिए समाज के अग्रणी, विशिष्ट लोगों को आज आगे आना पड़ेगा. हम अपने समाज के बच्चों को कभी भी हीनभावना का शिकार न होने दें बल्कि उनमें इतनी उर्जा, आत्मगौरव का भाव भर दें कि वे अपना मार्ग खुद प्रशस्त करने लायक हो जाएँ. वे किसी पर आश्रित न हों और किसी के बहकावे में न आएं. हमारे समाज में कम उम्र के बच्चों पर कोई ध्यान नहीं देता जब कि ८० प्रतिशत बच्चों का आइ. क्यु. पाँच वर्ष कि आयु में ही पूरा हो जाता है. बाकि २० प्रतिशत पूरे जीवन में संचित हो जाता है. अगर हमें अपनी अगली पीढ़ी को सुधारना है तो अपने पाँच वर्ष तक के बच्चों पर विशेष ध्यान देना होगा. उनके रहन-सहन, खान-पान, स्वास्थ्य एवं विकास कि समुचित व्यवस्था करनी पड़ेगी. यहीं से हमारे सुयोग्य समाज का निर्माण शुरू होता है. कहावत है- (चाइल्ड इस दि फादर आफ  मेन) - बच्चा बड़ा होकर बाप बनता है. जैसा बच्चा होगा, वैसे ही समाज कि संरचना होगी. तो आइये, हम अपने नन्हे-मुन्नों के लालन-पालन में भरपूर ध्यान दें जिससे उनका सर्वांगीण विकास हो सके. जिससे वे बड़े होकर समाज कि रचना करें और हमारा अगला समाज किसी दूसरे के आगे अपने को कमजोर या लाचार महसूस न करे. सभी के सामने कंधे से कन्धा मिलाकर उनमें चलने कि शक्ति हो, तीव्र बुद्धि हो, पूर्ण विकास हो और उनमें समाज मे ही नहीं बल्कि देश कि बड़ी से बड़ी ऊँचाइयों को छूने कि शक्ति हो, ताकत और बुद्धि हो. मैं यह तो नहीं जानता कि हमारा समाज कब सुधरेगा लेकिन उसके  प्रवर्तक और कार्यवाहक हमारे भावी नन्हे-मुन्ने ही होंगे.           _ अर्जुन सिंह, सेवानिवृत्त रेल इंजिनियर , वाराणसी

Sunday, April 10, 2011

देश की आज़ादी में बलिदान हुए चौहान..

प्रथम घटना- सन १८५८ की घटना है- अंग्रेज़ अधिकारी (सार्जेंट) जिसका नाम बिगुट था, वाराणसी-लखनऊ मार्ग से होकर अपने किसी काम से सैनिकों सहित कहीं जा रहा था की वाराणसी से लगभग ५० कि.  मी. कि दूरी पर  ग्राम हौज़, जिला- जोनपुर के पास अंग्रेजों को देश का दुश्मन मानते हुए स्थानीय ग्राम के चौहान समाज के लोगों ने बल्लम, फरसा, कुदाल, लाठी-डंडा, गडासा, हंसिया आदि लेकर अंग्रेजी सेना को घेर लिया, दोनों ओर से भीषण संग्राम हुआ, जिसमें अंग्रेज़ अधिकारी बुगेट सहित कई अंग्रेज़ सैनिक मरे गए. इस घटना के प्रतिरोध स्वरुप अंग्रेजों द्वारा गाँव में पहुंचकर चौहान बहुल स्थानों पर यातना-अत्याचार शुरू कर दिए गए, कोड़ों से पीटना, जूते से ठोकर मरना, बंदूकों कि बट मरना, पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं, बच्चों से भी गाली-गलोच करना, अभद्र व्यव्हार करने जैसी बातें आम हो गईं. इसीके साथ समाज के लोगों कि गिरफ्तारियां हुईं, आनन-फानन मुकदमा चला और बगावत के अपराध में १६ लोगों को महुआ के पेड़ पर लटकाकर अलग-अलग तारीखों में फँसी दे दी गई. आखिरकार आज़ादी कि वकालत करने वाले इन वीरों को पुरस्कारों में मिले भी तो क्या ? कोड़ों कि मार, फांसी, गोली, जेल और काला  पानी. 
                   चौहान समाज के देश के लिए कुर्बान जिन शहीदों को फांसी दी गई उनके नाम इस प्रकार हैं- 
क्रम             नाम                            फांसी की तारीख 
 १       स्व.सुक्खी पुत्र इंदरमन       ०५.०६. १८५८ 
२      स्व. परसन                                   "
३      स्व. मान                                      "
४      स्व. रामेश्वर                                 "
६       स्व. सुखलाल                              "
५        स्व. रामदीन                              "                                                                   
७     स्व.   इंदरमन                       ०७.०६.१८५८ 

८     स्व.    शिवदीन                             "
९      स्व. बरन                                      "
१०    स्व. ठकुरीम                                "
११     स्व. बाबर                              ०८. ०६. १८५८ 
१२    स्व. सुक्खू                              ०८. ०६. १८५८ 
१३    स्व. मातादीन                         १५. ०६ १८५८ 
१४    स्व. शिवपाल                                "
१५    स्व.  बालदत्त                        १३.०२. १८६० 
१६    स्व. गोवर्धन                         ०८. ०६ १८५८   
             सन २००१ के आसपास  इस लेख में उल्लेखित महुआ का पेड़ आंधी  में गिर गया. उपरोक्त शहीदों को अलग-अलग फांसी देने का कारण  अंग्रेजों द्वारा अपनी बर्बरता तथा आतंक की छाप छोड़ना था, ताकि आमजन इसे लम्बे समय तक याद रखें और दुबारा अंग्रेजों के साथ ऐसी पुनरावृत्ति न हो व् ऐसी घटना को अंजाम देने वाले एक बारगी  उनके ज़ुल्मों-सितम को याद करें, ऐसा अंग्रेजों का सोचना था. हम इन शहीदों को लाल सलाम करते हैं तथा चौहान समाज के ऐसे सदस्य जो की देश में उच्च राजनैतिक पदों पर आसीन हैं, आधिकारिक पदों पर विराजमान हैं- इन शहीदों की पीढियां जो की आज भी जीवित हैं उनके लिए कुछ करें, यही एक सच्ची श्रद्धांजलि होगी.
द्वितीय घटना- १६ अगस्त १९४२ की बात है, अंग्रेजी सेना (गोरी पलटन) वाराणसी से सड़क के रास्ते होकर लखनऊ  की  ओर जा रही थी, तभी वाराणसी-लखनऊ मार्ग पर वाराणसी से लगभग ८० क़ि. मी. दूर ग्राम- अगरौरा पड़ता है. यहाँ लोनिया-चौहान बिरादरी के लोग बहुतायत में  रहते हैं. इन लोगों को यह पता चलते ही क़ि अंग्रेजी सेना लखनऊ क़ि ओर जा रही है. ग्रामीणों में यकायक जोश जाग उठा और गाँव के तमाम लोग अपने-अपने घरों से फावड़ा, कुदाल, सब्बल, लाठी-डंडा आदि देहाती अस्त्र-शास्त्र औजार लेकर ग्राम- अगरौरा के समीप बने पुल जिसे लोह 'धनिया मऊ पुल' के नाम से जानते हैं, को तोड़ने लगे. ताकि अंग्रेजी सेना अपने गंतव्य क़ि ओर आगे न बढ़ सके. अँगरेज़ सैनिक यह देखते ही आग-बबूला हो गए क़ि साधारण सेगंवई-मजदूर दिखने वाले लोगों में कैसी यह हिम्मत ? जो अंग्रेजी सेना को आगे बढ़ने से रोक रहे रहें, उनके रास्ते में बाधा बन रहें हैं. देखते-देखते साधारण देशी हथियारों से लैस ग्रामीण और बंदूकों से लैस अंग्रेजी सैनिकों के मध्य भरी मरकत शुरू हो गई. अंग्रेजी अधिकारिओं ने गोली चलवा दी , आखिरकार लाठी-डंडे वाले ग्रामीण इन गोली-बंदूकों से कब तक मुकाबला करते? गोली-कांड से ग्रामीणों में भगदड़ मच गई, कई लोग ज़ख़्मी हुए, कई गंभीर रूप से घायल. इसी संग्राम में पुल तोड़ते समय रामपदारथ चौहान, एक कहर जाती का व्यक्ति तथा ठाकुर का लड़का( नाम अज्ञात) जो साईकल से   स्कूल  जा रहा था, क़ि अंग्रेजों द्वारा चलाई गई गोली का शिकार हो गए और तीन भारत माँ क़ि गोद में सदा-सदा के लिए सो गए. शेष बचे हुए लोग जन बचाकर भाग गए. 
              अंग्रेजों ने मामले को गंभीरता से लिया और ग्रामीणों क़ि गिरफ़्तारी के लिए अभियब तेज कर दिया. अततः कुछ गद्दार मुखबिरों क़ि सुचना पर २३ अगस्त १९४२ को चौहानों में प्रमुख तेज  तर्रार युवा रामानन्द चौहान और रघुराई चौहान गिरफ्तार कर लिए गए, जिन्हें अंग्रेजी सेना से लोहा लेने व् बगावत करने के जुर्म में एक सप्ताह के अन्दर दोनों व्यक्तियों को 'चिलबिल के पेड़' में फँसी दे दी गई ताकि अंग्रेजों से लोहा लेने क़ि कोई गुस्ताखी न कर सके. अंग्रेजों का हुक्म हुआ क़ि तीन दिन तक ये लाशें पेड़ से नहीं उतारी जाएंगी, जिस किसी ने ऐसा करने क़ि जुर्रत क़ि तो उसका भी यही हश्र होगा. पेड़ पर  झूलती लाशों क़ि सुरक्षा में अंग्रेज अधिकारिओं द्वारा सैनिक पहरा लगा दिया गया ताकि लोग इन लाशों को दूर से देखें परन्तु पास न आएं , न लाश उतारें. इस आतंक और दहशत के चलते कोई ग्रामीण या उसके घर के लोग लाश उतारने क़ि हिम्मत नहीं कर सके. क्रूरता-बर्बरता क़ि इस घटना को देखने के लिए आँखों में आंसू लिए आसपास के हजारो ग्रामीणों ने अपनी मूक श्रद्धांजलि दी और अंग्रेजों क़ि इस दमनकारी नीति का पुरजोर विरोध किया. 
              तत्कालीन समय गोली-कांड के शिकार हुए रामपदारथ चौहान की शादी के कुछ ही समय हुए थे क़ि यौनावस्था क़ि दहलीज़ पर पैर रखते ही उनकी पत्नी विधवा हो गई. उनके एक मात्र पुत्र जिसका नाम अच्छे
लाल  चौहान था , उस समय केवल ६ माह का नन्हा बालक था. दहशत और बदहवास क़ि स्थिति में रामपदारथ चौहान क़ि पत्नी बच्चे के पालन-पोषण एवं सुरक्षा क़ि दृष्टि से अपने मायके मुस्तफाबाद चली आईं, यहाँ नाना-नानी के मध्य रहकर बच्चे का पालन-पोषण हुआ. 

              इस घटना क़ि याद में चौहान बिरादरी के लोग प्रतिवर्ष इस बूढ़े 'चिलबिल के दरख़्त' के नीचे जुड़ते और रामपदारथ चौहान, रामानन्द चौहान, तथा रघुराई चौहान व् एनी क़ि शहादत पर अपनी आँखें नम कर के श्रद्धान्जली  देते थे. लेकिन समाजिक जागरूकता के अभाव में फांसी  के मौन गवाह बने 'चिलबिल के पेड़' को स्थानीय यादव व्यक्ति द्वारा सन १९७० के आसपास थोड़े से लालच के लिए उस पेड़ को कटवाकर बेच दिया गया. लोगों ने इस पेड़ काटने का थोडा-बहुत विरोध किया, लेकिन लकडहारा यादव दबंग होने के कारन स्थानीय लोग सशक्त तरीके से विरोध नहीं कर पाए और फांसी का वह निशान हमेशा-हमेशा के लिए मिट गया.
                    _मनोहर सिंह एडवोकेट, महेंद्र प्रताप चौहान, निवासी- आज़मगढ़ द्वारा उपलब्ध जानकारी पर आधारित

Monday, March 28, 2011

संगठन में शक्ति है










एकता ही समाज का दीपक है- एकता ही शांति का खजाना है। संगठन ही सर्वोत्कृषष्ट शक्ति है। संगठन ही समाजोत्थान का अधर है। संगठन बिन समाज का उत्थान संभव नहीं। एकता के बिना समाज आदर्श स्थापित नहीं कर सकता।, क्योंकि एकता ही समाज एवं देश के लिए अमोघ शक्ति है, किन्तु विघटन समाज के लिए विनाशक शक्ति है। विघटन समाज को तोड़ता है और संगठन व्यक्ति को जोड़ता है। संगठन समाज एवं देश को उन्नति के शिखर पर पहुंचा देता है। आपसी फूट एवं समाज का विनाश कर देती है। धागा यदि संगठित होकर एक जाए तो वः हठी जैसे शक्तिशाली जानवर को भी बांध सकता है। किन्तु वे धागे यदि अलग-अलग रहें तो वे एक तृण को भी बंधने में असमर्थ होते हैं। विघटित ५०० से - संगठित ५ श्रेष्ठ हैं। संगठन छे किसी भी क्षेत्र में क्यों न हो, वह सदैव अच्छा होता है- संगठन ही प्रगति का प्रतीक है, जिस घर में संगठन होता है उस घर में सदैव शांति एवं सुख की वर्षा होती है। चाहे व्यक्ति गरीब ही क्यों न हो, किन्तु यदि उसके घर-परिवार में संगठन है अर्थात सभी मिलकर एक हैं तो वह कभी भी दुखी नहीं हो सकता, लेकिन जहाँ या जिस घर में विघटन है अर्थात एकता नहीं है तो उस घर में चाहे कितना भी धन, वैभव हो किन्तु विघटन, फूट हो तो हानि ही हाथ आती है।











एकता बहुत बड़ी उपलब्धि है, जहाँ एकता है वहां कोई भी विद्रोही शक्ति सफल नहीं हो सकती है, जहाँ संगठन है वहां बहुत बड़ा बोझ उठाना भारी नहीं लगता। जहाँ संगठन है, एकता है वहां हमेशा प्रेम-वात्सल्य बरसता है- एकता ही प्रेम को जन्म देती है, एकता ही विकास को गति देती है।



रावण की अक्षोहीनी सेना का संहार हो गया, कौरवों का विध्वंस हो गया, क्योंकी मात्र आपस की फूट से, विघटन से रावण ने अनीति, अत्याचार की और कदम बढाया, यह सब विभीषण को सहन नहीं हुआ, भाई ने ही भाई का रहस्य बतला दिया, घर में फूट हो गई। मात्र उसी फूट से ही रवां परस्त हुआ क्यों की घर में एकता नहीं थी। जहाँ अनीति और अत्याचार प्रारंभ हो जाता है वहां से ही विघटन प्रारंभ हो जाता है। विघटन से ही फूट और फूट से व्यक्ति का विनाश हो जाता है। कौरव सौ होकर भी पांच पांडव से परस्त हो गए, क्यों ? क्योंकि पांडव भले ही पांच थे किन्तु पाँचों एक थे, एक ही धागे में पिरोये हुए थे, धागा यदि संगठित होकर एक हो जाए तो उसी धागे से बड़े जानवर को भी बाँधने में समर्थ हो जाते हैं किन्तु वह बिखरकर अलग हो जाएँ तो जीर्ण तरन को भी बाँधने में समर्थ नहीं होते, टूट जाएँगे। बिखरा हुआ व्यक्ति टूटता है- बिखरा समाज टूटता है- बिखराव में उन्नति नहीं अवनति होती है- बिखराव किसी भी क्षेत्र में अच्छा नहीं। जो समाज संगठित होगा, एकता के सूत्र में बंधा होगा, वह कभी भी परास्त नहीं हो सकता- क्योंकि एकता ही सर्वश्रेष्ठ शक्ति है, किन्तु जहाँ विघटन है, एकता नहीं है उस समाज पर चाहे कोई भी आक्रमण कर विध्वंस कर देगा। इसलिए ५०० विघटित व्यक्तियों से ५ संगठित व्यक्ति श्रेष्ठ हैं, बहुत बड़े विघटित समाज से छोटा सा संगठित समाज श्रेष्ठ है। यदि समाज को आदर्शशील बनाना चाहते हो तो एकता की और कदम बढाओ।




समाज एकता की चर्चा करने के पूर्व आवश्यकता है- घर की एकता, परिवार की एकता की। क्योंकि जब तक घर की एकता नहीं होगी- तब तक समाज, राष्ट्र, विश्व की एकता संभव नहीं। एकता ही समाज को विकासशील बना सकती है। समाज के संगठन से एकता का जन्म होता है एवं एकता से ही शांति एवं आनंद की वृष्टि होती है। इसलिए हम सब के लिए यही संकेत है की एकता के सूत्र को चरितार्थ कर समाज को गौरवान्वित करें.... मनोहर सिंह चौहान, एडवोकेट

Friday, March 18, 2011

वर्तमान की ज्वलंत समस्या

हर माता-पिता चाहे वह अमीर हो या गरीब उनकी एक ही तमन्ना होती है की उसकी संतानें पढ़-लिखकर उन्नति के शिखर पर सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त करें। इसके लिए वे हर प्रकार का त्याग करते हैं। अपने जीवन भर की गाढ़ी कमाई को अपने बच्चों के पालन-पोषण और पढाई-लिखी में खर्च कर देते हैं। किन्तु बच्चे पढ़ लिखकर कैरियर में अच्छा मुकाम हासिल कर लेते हैं तो वे अपने उन्हीं माता-पिता की उपेक्षा करने लगते हैं।

जिन्होंने उनकी उन्नति के लिए सब कुछ दांव पर लगा दिया है। भौतिकवादी संस्कृति के वशीभूत होकर शिक्षित व समर्थ नवयुवक-नवयुवतियों अपने बच्चों के साथ एकल परिवार के रूप में रहना अपनी शान समझते हैं। शायद वे इस सत्य से अनभिग्य हैं की उन्हें भी एक दिन बूढा होना है। वर्तमान की इस ज्वलंत समस्या के चलते असंख्य बूढ़े माता-पिता या तो घर के एक कोने में उपेक्षित पड़े रहते हैं अथवा वृद्धाश्रमों में जाकर शेष दिन काटने के लिए मजबूर हैं। आने वाले समय में यह समस्या विकराल रूप ले इसके पहले समय रहते हम सबको मिलकर वैचारिक क्रांति छेड़नी होगी।

_बी डी सिंह सोलंकी

Thursday, March 17, 2011

मैं भारत की नारी हूँ

A real photo of 'Jhansi Ki Rani'
मुझको कोई फूल न समझे, छुपी हुई चिंगारी हूँ।

अरि का शीश काटने वाली मैं भारत की नारी हूँ

त्याग भरा है पन्ना मां का,

जौहर पद्मिनी नारी का।

शीश उतारूँ रन रंगन में,

लेकर शूल भवानी का॥

रन में धूम मचाने वाली, मैं झाँसी की रानी हूँ।

अरि का शीश काटने वाली,मैं भारत की नारी हूँ॥

अग्नि परीक्षा देने वाली,

सीता की तस्वीर हूँ मैं।

सावित्री का पवन व्रत हूँ मैं ,

सत्यवान तकदीर हूँ मैं॥

देवों को पालने झुलाती, अनुसुइया सी नारी हूँ।

सिंहवाहिनी दुर्गा हूँ मैं, मैं भारत की नारी हूँ॥

फूल भी हूँ, शबनम भी हूँ,

पति का पवन श्रृंगार भी हूँ।

मुझको देखे कोई कुदृष्टि से,

तो उस पापी का अंगार हूँ मैं॥

ले कतार छाती पर चढ़ती, मैं भारत की छत्रानी हूँ।

अरि का शीश काटने वाली, मैं भारत की नारी हूँ॥

_शिवांगी सिसोदिया, ग्राम- नगला भोजपुर, पोस्ट- कुस्मारा, जिला- मैनपुरी, (उ. प्रदेश)

एक गीत

झंडा तिरंगा मेरी जान है,

मेरे भारत की पहचान है।

झंडे तिरंगे में तीन है रंग,

देश की खातिर निकला था दम।

याद जो वीरों की आती है,

आँख मेरी भर आती है।

वीरों ने कितने उठाए थे सितम,

झंडा तिरंगा ऊँचा रहे हर दम।

तिरंगा झंडा मेरी जान है,

मेरे भारत की पहचान है।

-सीमा सिसोदिया, ग्राम-- नगला भोजपुर, पोस्ट कुश्मरा, जिला- मैनपुरी (उ.प्र.)

Friday, March 11, 2011

तृतीय विश्वयुद्ध प्रारंभ- क्या नास्ट्रेदमस की भविष्यवाणी सच होने जा रही है !

मैं जो लिख रहा हूँ वह कोई आजकल की लिखी हुई किताब से नही है बल्कि 14 दिसंबर 1503 को फ्रांस में जन्मे नास्त्रेदमस की लिखी भविष्यवाणी पर आधारित पुस्तक से पढकर लिख रहा हूँ ।
नास्त्रेदमस की दुर्लभ भविष्यवाणी नामक इस पुस्तक के अनुवादक अशोक कुमार शर्मा हैं । मैं इस पुस्तक को पढ रहा था कि इसके पृष्ट क्रमांक 48 पर निगाह पडते ही मैं सन्न रह गया इसमें लिखा है “एक पनडुब्बी में तमाम हथियार और दस्तावेज लेकर वह व्यक्ति इटली के तट पर पहुंचेगा और युद्ध शुरू करेगा । उसका काफिला बहुत दूर से इतालवी तट तक आएगा “
अब इसके आगे की लाइन पर गौर फरमाएँ - अगर विश्व मानचित्र को ध्यान से देखा जाये तो इटली के तट की ओर आने के लिये सबसे उपयुक्त रास्ता समद्र मार्ग ही लगता है । आधुनिक युद्धों में किसी भी देश पर मिसाइल तथा विमानों से आक्रमण करना तो संभव होगा नही । फिर पनडुब्बी द्वारा समुद्र के भीतर-भीतर होकर एक दम किसी देश पर हमला कर देना आसान भी है और कम जोखिमभरा भी । अपने ही देश में दुश्मन पर अणु बम भी नही चलाया जा सकता । इससे मुकाबला सैनिको के बीच होगा न कि तकनीक के बीच ।
इसके बाद की लाइनों ने ही मेरे होश उडा दिये इसमें साफ साफ लिखा गया कि – इटली के चारो ओर मित्र राष्ट्र हैं मगर कुछ ही दूरी पर लगभग एक हजार किलोमीटर के क्षेत्र में लीबिया, अल्जीरिया, मिश्र, सउदी अरब, तुर्की और इस्राइली तट हैं । इनमें से कौन सा देश युद्ध शुरू करेगा अनुमान लगाना कठिन है मगर पश्चिमी समीक्षक यह संदेह करते हैं कि लीबिया यह कारनामा कर सकता है ।
अब इसे पढने के बाद आप बतायें कि हाथों को लिखने से कैसे रोका जा सकता है । चाहे जैसी भी समीक्षा की की गई हो लेकिन यह बहुत ही सटीक भविष्यवाणी है । इन भविष्याणीयों में और भी कई बातें जुडी हुई है मगर वर्तमान में जिस तरह से वातावरण बन रहा है उसमें अमेरिका- रूस का गठबंधन एवं पूर्व में चीन- अरब गठबंधन बनने की आशंका बताई गई है । अभी हाल ही में इरान नें अमेरिका को लीबिया में दखलंदाजी करने से मना किया है । लेकिन ऊपर जिस तरह से पनडुब्बी की बात आई है उससे तो यही लगता है कि अमेरिका मित्र देशों के साथ मिलकर लीबिया को नो फ्लाई जोन में तब्दील करवा सकता है जिसके बाद गद्दाफी के पास पनडुब्बी के अलावा कोई दुसरा विकल्प नही बचेगा ।
अभी अभी की खबर है - समाचार चैनल ‘अल जजीरा’ के मुताबिक रास लानूफ शहर के ऊपर लड़ाकू विमान चक्कर लगा रहे हैं, जबकि विद्रोही विमानों का अपना निशाना बना रहे हैं। यानि की मैं इस खबर को लिख रहा हूँ और भविष्यवाणी का समय पास आता जा रहा है । इसके अलावा इसमें जिस तरह से विश्व के नेताओं की स्थिति जाहिर की गई है वह इस समय बिल्कुल सही स्थान पर है जैसे – तीन ओर जल से घिरे देश में एक नेता होगा जो जंगली नाम वाला होगा (इसकी व्याख्या इस प्रकार की गई है की भविष्य में कोई सिख(सिंह ) भारत मे प्रधानमंत्री पद पर बैठेगा ) वर्तमान में मनमोहन सिंह इसी पद पर हैं , एक देश मे जन क्रांति से नया नेता सत्ता संभालेगा ( मिश्र में हो चुका है ) नया पोप दुसरे देश में बैठेगा (वर्तमान के पोप फ्रांस में रहते हैं ) मंगोल (चीन) चर्च के खिलाफ युद्ध छेडेगा ( चीन नेंं अमेरिका को लीबिया से दूर रहने की सलाह दे डाली है ) इसके अलावा और भी कई चीजें ऐसी होने वाली है जो कुछ ही दिनों में पूरी हो सकती है । जैसे – छुपा बैठा शैतान अचानक बाहर निकल आएगा ( ओसामा या अन्य बडा आतंकवादी समाने आ सकता है) नया धर्म (इस्लाम) चर्च के खिलाफ भारी मारकाट करते हुए इटली और फ्रांस तक जा पहुंचेगा ।
उफ्फ्फ्फ्फ ना जाने और भी कितनी बातें है जिन्हे पढने से ही सिहरन हो जाती है । लेकिन जो नियती है वह तो निभ कर ही रहेगी....

Monday, January 3, 2011

Varsh nav harsh nav, jeevan utkarsh nav !!

संगठन में शक्ति है


एकता ही समाज का दीपक है- एकता ही शांति का खजाना है। संगठन ही सर्वोत्कृषष्ट शक्ति है। संगठन ही समाजोत्थान का अधर है। संगठन बिन समाज का उत्थान संभव नहीं। एकता के बिना समाज आदर्श स्थापित नहीं कर सकता।, क्योंकि एकता ही समाज एवं देश के लिए अमोघ शक्ति है, किन्तु विघटन समाज के लिए विनाशक शक्ति है। विघटन समाज को तोड़ता है और संगठन व्यक्ति को जोड़ता है। संगठन समाज एवं देश को उन्नति के शिखर पर पहुंचा देता है। आपसी फूट एवं समाज का विनाश कर देती है। धागा यदि संगठित होकर एक जाए तो वः हठी जैसे शक्तिशाली जानवर को भी बांध सकता है। किन्तु वे धागे यदि अलग-अलग रहें तो वे एक तृण को भी बंधने में असमर्थ होते हैं। विघटित ५०० से - संगठित ५ श्रेष्ठ हैं। संगठन छे किसी भी क्षेत्र में क्यों न हो, वह सदैव अच्छा होता है- संगठन ही प्रगति का प्रतीक है, जिस घर में संगठन होता है उस घर में सदैव शांति एवं सुख की वर्षा होती है। चाहे व्यक्ति गरीब ही क्यों न हो, किन्तु यदि उसके घर-परिवार में संगठन है अर्थात सभी मिलकर एक हैं तो वह कभी भी दुखी नहीं हो सकता, लेकिन जहाँ या जिस घर में विघटन है अर्थात एकता नहीं है तो उस घर में चाहे कितना भी धन, वैभव हो किन्तु विघटन, फूट हो तो हानि ही हाथ आती है।





एकता बहुत बड़ी उपलब्धि है, जहाँ एकता है वहां कोई भी विद्रोही शक्ति सफल नहीं हो सकती है, जहाँ संगठन है वहां बहुत बड़ा बोझ उठाना भारी नहीं लगता। जहाँ संगठन है, एकता है वहां हमेशा प्रेम-वात्सल्य बरसता है- एकता ही प्रेम को जन्म देती है, एकता ही विकास को गति देती है।

रावण की अक्षोहीनी सेना का संहार हो गया, कौरवों का विध्वंस हो गया, क्योंकी मात्र आपस की फूट से, विघटन से रावण ने अनीति, अत्याचार की और कदम बढाया, यह सब विभीषण को सहन नहीं हुआ, भाई ने ही भाई का रहस्य बतला दिया, घर में फूट हो गई। मात्र उसी फूट से ही रवां परस्त हुआ क्यों की घर में एकता नहीं थी। जहाँ अनीति और अत्याचार प्रारंभ हो जाता है वहां से ही विघटन प्रारंभ हो जाता है। विघटन से ही फूट और फूट से व्यक्ति का विनाश हो जाता है। कौरव सौ होकर भी पांच पांडव से परस्त हो गए, क्यों ? क्योंकि पांडव भले ही पांच थे किन्तु पाँचों एक थे, एक ही धागे में पिरोये हुए थे, धागा यदि संगठित होकर एक हो जाए तो उसी धागे से बड़े जानवर को भी बाँधने में समर्थ हो जाते हैं किन्तु वह बिखरकर अलग हो जाएँ तो जीर्ण तरन को भी बाँधने में समर्थ नहीं होते, टूट जाएँगे। बिखरा हुआ व्यक्ति टूटता है- बिखरा समाज टूटता है- बिखराव में उन्नति नहीं अवनति होती है- बिखराव किसी भी क्षेत्र में अच्छा नहीं। जो समाज संगठित होगा, एकता के सूत्र में बंधा होगा, वह कभी भी परास्त नहीं हो सकता- क्योंकि एकता ही सर्वश्रेष्ठ शक्ति है, किन्तु जहाँ विघटन है, एकता नहीं है उस समाज पर चाहे कोई भी आक्रमण कर विध्वंस कर देगा। इसलिए ५०० विघटित व्यक्तियों से ५ संगठित व्यक्ति श्रेष्ठ हैं, बहुत बड़े विघटित समाज से छोटा सा संगठित समाज श्रेष्ठ है। यदि समाज को आदर्शशील बनाना चाहते हो तो एकता की और कदम बढाओ।

समाज एकता की चर्चा करने के पूर्व आवश्यकता है- घर की एकता, परिवार की एकता की। क्योंकि जब तक घर की एकता नहीं होगी- तब तक समाज, राष्ट्र, विश्व की एकता संभव नहीं। एकता ही समाज को विकासशील बना सकती है। समाज के संगठन से एकता का जन्म होता है एवं एकता से ही शांति एवं आनंद की वृष्टि होती है। इसलिए हम सब के लिए यही संकेत है की एकता के सूत्र को चरितार्थ कर समाज को गौरवान्वित करें.... मनोहर सिंह चौहान, एडवोकेट