प्रथम घटना- सन १८५८ की घटना है- अंग्रेज़ अधिकारी (सार्जेंट) जिसका नाम बिगुट था, वाराणसी-लखनऊ मार्ग से होकर अपने किसी काम से सैनिकों सहित कहीं जा रहा था की वाराणसी से लगभग ५० कि. मी. कि दूरी पर ग्राम हौज़, जिला- जोनपुर के पास अंग्रेजों को देश का दुश्मन मानते हुए स्थानीय ग्राम के चौहान समाज के लोगों ने बल्लम, फरसा, कुदाल, लाठी-डंडा, गडासा, हंसिया आदि लेकर अंग्रेजी सेना को घेर लिया, दोनों ओर से भीषण संग्राम हुआ, जिसमें अंग्रेज़ अधिकारी बुगेट सहित कई अंग्रेज़ सैनिक मरे गए. इस घटना के प्रतिरोध स्वरुप अंग्रेजों द्वारा गाँव में पहुंचकर चौहान बहुल स्थानों पर यातना-अत्याचार शुरू कर दिए गए, कोड़ों से पीटना, जूते से ठोकर मरना, बंदूकों कि बट मरना, पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं, बच्चों से भी गाली-गलोच करना, अभद्र व्यव्हार करने जैसी बातें आम हो गईं. इसीके साथ समाज के लोगों कि गिरफ्तारियां हुईं, आनन-फानन मुकदमा चला और बगावत के अपराध में १६ लोगों को महुआ के पेड़ पर लटकाकर अलग-अलग तारीखों में फँसी दे दी गई. आखिरकार आज़ादी कि वकालत करने वाले इन वीरों को पुरस्कारों में मिले भी तो क्या ? कोड़ों कि मार, फांसी, गोली, जेल और काला पानी.
चौहान समाज के देश के लिए कुर्बान जिन शहीदों को फांसी दी गई उनके नाम इस प्रकार हैं-
क्रम नाम फांसी की तारीख
१ स्व.सुक्खी पुत्र इंदरमन ०५.०६. १८५८
२ स्व. परसन "
३ स्व. मान "
४ स्व. रामेश्वर "
६ स्व. सुखलाल "
६ स्व. सुखलाल "
५ स्व. रामदीन "
७ स्व. इंदरमन ०७.०६.१८५८
८ स्व. शिवदीन "
९ स्व. बरन "
१० स्व. ठकुरीम "
११ स्व. बाबर ०८. ०६. १८५८
१२ स्व. सुक्खू ०८. ०६. १८५८
१३ स्व. मातादीन १५. ०६ १८५८
१४ स्व. शिवपाल "
१५ स्व. बालदत्त १३.०२. १८६०
१६ स्व. गोवर्धन ०८. ०६ १८५८
सन २००१ के आसपास इस लेख में उल्लेखित महुआ का पेड़ आंधी में गिर गया. उपरोक्त शहीदों को अलग-अलग फांसी देने का कारण अंग्रेजों द्वारा अपनी बर्बरता तथा आतंक की छाप छोड़ना था, ताकि आमजन इसे लम्बे समय तक याद रखें और दुबारा अंग्रेजों के साथ ऐसी पुनरावृत्ति न हो व् ऐसी घटना को अंजाम देने वाले एक बारगी उनके ज़ुल्मों-सितम को याद करें, ऐसा अंग्रेजों का सोचना था. हम इन शहीदों को लाल सलाम करते हैं तथा चौहान समाज के ऐसे सदस्य जो की देश में उच्च राजनैतिक पदों पर आसीन हैं, आधिकारिक पदों पर विराजमान हैं- इन शहीदों की पीढियां जो की आज भी जीवित हैं उनके लिए कुछ करें, यही एक सच्ची श्रद्धांजलि होगी.
द्वितीय घटना- १६ अगस्त १९४२ की बात है, अंग्रेजी सेना (गोरी पलटन) वाराणसी से सड़क के रास्ते होकर लखनऊ की ओर जा रही थी, तभी वाराणसी-लखनऊ मार्ग पर वाराणसी से लगभग ८० क़ि. मी. दूर ग्राम- अगरौरा पड़ता है. यहाँ लोनिया-चौहान बिरादरी के लोग बहुतायत में रहते हैं. इन लोगों को यह पता चलते ही क़ि अंग्रेजी सेना लखनऊ क़ि ओर जा रही है. ग्रामीणों में यकायक जोश जाग उठा और गाँव के तमाम लोग अपने-अपने घरों से फावड़ा, कुदाल, सब्बल, लाठी-डंडा आदि देहाती अस्त्र-शास्त्र औजार लेकर ग्राम- अगरौरा के समीप बने पुल जिसे लोह 'धनिया मऊ पुल' के नाम से जानते हैं, को तोड़ने लगे. ताकि अंग्रेजी सेना अपने गंतव्य क़ि ओर आगे न बढ़ सके. अँगरेज़ सैनिक यह देखते ही आग-बबूला हो गए क़ि साधारण सेगंवई-मजदूर दिखने वाले लोगों में कैसी यह हिम्मत ? जो अंग्रेजी सेना को आगे बढ़ने से रोक रहे रहें, उनके रास्ते में बाधा बन रहें हैं. देखते-देखते साधारण देशी हथियारों से लैस ग्रामीण और बंदूकों से लैस अंग्रेजी सैनिकों के मध्य भरी मरकत शुरू हो गई. अंग्रेजी अधिकारिओं ने गोली चलवा दी , आखिरकार लाठी-डंडे वाले ग्रामीण इन गोली-बंदूकों से कब तक मुकाबला करते? गोली-कांड से ग्रामीणों में भगदड़ मच गई, कई लोग ज़ख़्मी हुए, कई गंभीर रूप से घायल. इसी संग्राम में पुल तोड़ते समय रामपदारथ चौहान, एक कहर जाती का व्यक्ति तथा ठाकुर का लड़का( नाम अज्ञात) जो साईकल से स्कूल जा रहा था, क़ि अंग्रेजों द्वारा चलाई गई गोली का शिकार हो गए और तीन भारत माँ क़ि गोद में सदा-सदा के लिए सो गए. शेष बचे हुए लोग जन बचाकर भाग गए.
अंग्रेजों ने मामले को गंभीरता से लिया और ग्रामीणों क़ि गिरफ़्तारी के लिए अभियब तेज कर दिया. अततः कुछ गद्दार मुखबिरों क़ि सुचना पर २३ अगस्त १९४२ को चौहानों में प्रमुख तेज तर्रार युवा रामानन्द चौहान और रघुराई चौहान गिरफ्तार कर लिए गए, जिन्हें अंग्रेजी सेना से लोहा लेने व् बगावत करने के जुर्म में एक सप्ताह के अन्दर दोनों व्यक्तियों को 'चिलबिल के पेड़' में फँसी दे दी गई ताकि अंग्रेजों से लोहा लेने क़ि कोई गुस्ताखी न कर सके. अंग्रेजों का हुक्म हुआ क़ि तीन दिन तक ये लाशें पेड़ से नहीं उतारी जाएंगी, जिस किसी ने ऐसा करने क़ि जुर्रत क़ि तो उसका भी यही हश्र होगा. पेड़ पर झूलती लाशों क़ि सुरक्षा में अंग्रेज अधिकारिओं द्वारा सैनिक पहरा लगा दिया गया ताकि लोग इन लाशों को दूर से देखें परन्तु पास न आएं , न लाश उतारें. इस आतंक और दहशत के चलते कोई ग्रामीण या उसके घर के लोग लाश उतारने क़ि हिम्मत नहीं कर सके. क्रूरता-बर्बरता क़ि इस घटना को देखने के लिए आँखों में आंसू लिए आसपास के हजारो ग्रामीणों ने अपनी मूक श्रद्धांजलि दी और अंग्रेजों क़ि इस दमनकारी नीति का पुरजोर विरोध किया.
तत्कालीन समय गोली-कांड के शिकार हुए रामपदारथ चौहान की शादी के कुछ ही समय हुए थे क़ि यौनावस्था क़ि दहलीज़ पर पैर रखते ही उनकी पत्नी विधवा हो गई. उनके एक मात्र पुत्र जिसका नाम अच्छे
लाल चौहान था , उस समय केवल ६ माह का नन्हा बालक था. दहशत और बदहवास क़ि स्थिति में रामपदारथ चौहान क़ि पत्नी बच्चे के पालन-पोषण एवं सुरक्षा क़ि दृष्टि से अपने मायके मुस्तफाबाद चली आईं, यहाँ नाना-नानी के मध्य रहकर बच्चे का पालन-पोषण हुआ.
इस घटना क़ि याद में चौहान बिरादरी के लोग प्रतिवर्ष इस बूढ़े 'चिलबिल के दरख़्त' के नीचे जुड़ते और रामपदारथ चौहान, रामानन्द चौहान, तथा रघुराई चौहान व् एनी क़ि शहादत पर अपनी आँखें नम कर के श्रद्धान्जली देते थे. लेकिन समाजिक जागरूकता के अभाव में फांसी के मौन गवाह बने 'चिलबिल के पेड़' को स्थानीय यादव व्यक्ति द्वारा सन १९७० के आसपास थोड़े से लालच के लिए उस पेड़ को कटवाकर बेच दिया गया. लोगों ने इस पेड़ काटने का थोडा-बहुत विरोध किया, लेकिन लकडहारा यादव दबंग होने के कारन स्थानीय लोग सशक्त तरीके से विरोध नहीं कर पाए और फांसी का वह निशान हमेशा-हमेशा के लिए मिट गया.
_मनोहर सिंह एडवोकेट, महेंद्र प्रताप चौहान, निवासी- आज़मगढ़ द्वारा उपलब्ध जानकारी पर आधारित
Blog dekhakar achchha laga.yahan bhi aane ki kripa kren....www.puravaiblogspot.com
ReplyDeleteSabhi Chauhan bhaiyon ko Rajput chhatriya banane ki koshish kare Kyunki Itihas mein sab Chatri hi
DeleteSabhi Chauhan bhaiyon ko Rajput chhatriya banane ki koshish kare Kyunki Itihas mein sab Chatri hi
DeleteChauhan ko jo neecha dikhaye sabhi log ek ho ke use maaro aj ke kayar chauhan kal ke beer the itihas gavah hai ham chauhanon ki utpati agni yag duara hui hai
Deleteबकक लोनियो नीच
DeleteImportant information
ReplyDeleteImportant information
ReplyDeleteBrijeshsingh chauhan
ReplyDeleteBrijeshsingh chauhan
ReplyDeleteउन वीरों को सलाम जो अंग्रेजों से मोर्चा लिया
ReplyDeleteIn veero ko meri or se shradhanjali yeh chauhan hi hai jo is tarah se aazadi ke liye apni qurbaani de sakte hai
ReplyDeleteMujhe bhi is pariwar se judne par garv hai
ReplyDeleteइन जबांज जवानो को हमारी राजपूत चौहान समाज की shradhanjali
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लगा
ReplyDeleteChauhan Kshatriya hain aur hame kshatriy bankar rahna chahiy Jai Chauhan
ReplyDeleteChauhan Kshatriya hain aur hame kshatriy bankar rahna chahiy Jai Chauhan
ReplyDeleteChauhan Kshatriya hain aur hame kshatriy bankar rahna chahiy Jai Chauhan
ReplyDeleteLohiya h kuch konia bhi apne aap ko chauhan likhte h lohiya koun h unhe comment box me jarur bataye
ReplyDeleteJi mahoday ji aapne sayad acche se pada nahi hey Dutiye gatna me kiske sath angrejo ne jadap ki hey
Deletekripya use dyan se padiye
Jai ho Rajputana.
ReplyDeleteJai ho bhawani
Jai ho Mahakal..
Are kya jamana aa gaya .
ReplyDeleteNuneri.chouhan
TeliH.Rathour
Lohar. sharma
Sunar.verma
Ho rahe H thodi to sarm karo Apni jo H Use orginL rakho ..khal chadakar koi ser ni ho jaata ...
म****** अनपढ़ है क्या इतिहास पढ़ा नहीं तूने तुम जैसे कायर साले रणभूमि को छोड़कर के भाग आए थे
DeleteAb sab sudhar honi chhahiye. Ok
ReplyDeleteChauhan ji ki taraph se yahi anurodh hai.jo aap ki hai.
ReplyDeleteHam apke sath hai
ReplyDeleteShyam singh chauhan up kanputk
Garv h hme apne chauhan vansh pr
ReplyDeleteCrucial information hai because at this time narendra modi ne sc category me rakh diya hai.
ReplyDeleteChauhan jat ek bahut kayar jat hai en chauhano me koe avkat nahi hai
ReplyDeleteAap sabhi Chauhan rajput bhaiyo ko apna samman phir se lay
ReplyDeleteManohar singh kharwal sisodiya
ReplyDeleteEk achchhe aur nek chauhan yugpurush ki jaroorat hai chauhan samaj ko jagane ke liye
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